भारत का इतिहास

शुक्रवार, दिसंबर 11, 2015

दिलीप कुमार

दिलीप कुमार  

दिलीप कुमार
दिलीप कुमार
पूरा नाममोहम्मद युसूफ़ ख़ान
प्रसिद्ध नामदिलीप कुमार
अन्य नामट्रेजडी किंग, दिलीप साहब
जन्म11 दिसंबर1922
जन्म भूमिपेशावर (अब पाकिस्तान में)
अभिभावकलाला ग़ुलाम सरवर (पिता)
पति/पत्नीसायरा बानो
कर्म भूमिमुंबई
कर्म-क्षेत्रफ़िल्म अभिनेता, फ़िल्म निर्माता, राजनीतिज्ञ
मुख्य फ़िल्मेंदाग़ (1954), आज़ाद, देवदास (1955)नया दौरमुग़ल-ए-आज़म, लीडर, राम और श्यामशक्ति आदि
पुरस्कार-उपाधिपद्म भूषणपद्म विभूषणदादा साहब फाल्के पुरस्कार, निशान-ए-इम्तियाज[1]
नागरिकताभारतीय
अन्य जानकारीशायद यह कम लोगों को ही पता हो कि दिलीप कुमार अच्छे पटकथा लेखक भी हैं। अपनी इस प्रतिभा का प्रदर्शन उन्होंने फ़िल्म 'लीडर' में किया था।
अद्यतन‎
दिलीप कुमार (अंग्रेज़ीDilip Kumar, जन्म- 11 दिसंबर1922हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता और राज्य सभा के पूर्व सदस्य है। दिलीप कुमार का वास्तविक नाम 'मोहम्मद युसुफ़ ख़ान' है। दिलीप कुमार को अपने दौर का बेहतरीन अभिनेता माना जाता है, त्रासद भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हे 'ट्रेजडी किंग' भी कहा जाता था। दिलीप कुमार को भारतीय फ़िल्मों में यादगार अभिनय करने के लिए फ़िल्मों का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार के अलावा पद्म भूषणपद्म विभूषण और पाकिस्तानका सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'निशान-ए-इम्तियाज़' से सम्मानित किया गया है।

जीवन परिचय

जन्म और बचपन

दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसम्बर1922 को वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर शहर में हुआ था। उनके बचपन का नाम 'मोहम्मद युसूफ़ ख़ान था। उनके पिता का नाम लाला ग़ुलाम सरवर था जो फल बेचकर अपने परिवार का ख़र्च चलाते थे। विभाजन के दौरान उनका परिवार मुंबई आकर बस गया। उनका शुरुआती जीवन तंगहाली में ही गुजरा। पिता के व्यापार में घाटा होने के कारण वह पुणेकी एक कैंटीन में काम करने लगे थे। यहीं देविका रानी की पहली नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने दिलीप कुमार को अभिनेता बना दिया। देविका रानी ने ही 'युसूफ़ ख़ान' की जगह उनका नया नाम 'दिलीप कुमार' रखा। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे।[2]
दिलीप कुमार (युवावस्था में)

फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत

दिलीप कुमार ने फ़िल्म “ज्वार भाटा” से अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की। हालांकि यह फ़िल्म सफल नहीं रही। उनकी पहली हिट फ़िल्म “जुगनू” थी। 1947 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म ने बॉलीवुड में दिलीप कुमार को हिट फ़िल्मों के स्टार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। 1949 में फ़िल्म “अंदाज़” में दिलीप कुमार ने पहली बारराजकपूर के साथ काम किया। यह फ़िल्म एक हिट साबित हुई। दीदार (1951) और देवदास (1955) जैसी फ़िल्मों में गंभीर भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा। मुग़ले-ए-आज़म (1960) में उन्होंने मुग़ल राजकुमार जहाँगीर की भूमिका निभाई। “राम और श्याम” में दिलीप कुमार द्वारा निभाया गया दोहरी भूमिका (डबल रोल) आज भी लोगों को गुदगुदाने में सफल साबित होता है। 1970, 1980 और 1990 के दशक में उन्होंने कम फ़िल्मों में काम किया। इस समय की उनकी प्रमुख फ़िल्में थीं: क्रांति (1981), विधाता (1982), दुनिया (1984), कर्मा (1986), इज़्ज़तदार (1990) और सौदागर (1991)। 1998 में बनी फ़िल्म “क़िला” उनकी आखिरी फ़िल्म थी।[2]

व्यक्तित्व

दिलीप कुमार अपने आप में सेल्फमेडमैन (स्वनिर्मित मनुष्य) की जीती-जागती मिसाल हैं। उनकी 'निजी ज़िन्दगी' हमेशा कौतुहल का विषय रही, जिसमें रोजमर्रा के सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव, मिलना-बिछुड़ना, इकरार-तकरार सभी शामिल थे। ईश्वर-भीरू दिलीप कुमार को साहित्यसंगीत और दर्शन की अभिरुचि ने गंभीर और प्रभावशाली हस्ती बना दिया।[3]

अभिनय सम्राट

दिलीप कुमार (फ़िल्म- मुग़ले आज़म)
शहीद, अंदाज़, आन, देवदास, नया दौर, मधुमती, यहूदी, पैग़ाम, मुग़ल-ए-आजम, गंगा-जमना, लीडर तथा राम और श्याम जैसी फ़िल्मों के सलोने नायक दिलीप कुमार स्वतंत्र भारत के पहले दो दशकों में लाखों युवा दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गए थे। सभ्य, सुसंस्त, कुलीन इस अभिनेता ने रंगीन और रंगहीन (श्वेत-श्याम) सिनेमा के पर्दे पर अपने आपको कई रूपों में प्रस्तुत किया। असफल प्रेमी के रूप में उन्होंने विशेष ख्याति पाई, लेकिन यह भी सिद्ध किया कि हास्य भूमिकाओं में वे किसी से कम नहीं हैं। वे ट्रेजेडी किंग भी कहलाए और ऑलराउंडर भी। उनकी गिनती अतिसंवेदनशील कलाकारों में की जाती है, लेकिन दिल और दिमाग के सामंजस्य के साथ उन्होंने अपने व्यक्तित्व और जीवन को ढाला। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे। वह आज़ादी का उदयकाल था। शीघ्र ही राजकपूर और देव आनंद के आगमन से 'दिलीप-राज-देव' की प्रसिद्ध त्रिमूर्ति का निर्माण हुआ। ये नए चेहरे आम सिने दर्शकों को मोहक लगे। इनसे पूर्व के अधिकांश हीरो प्रौढ़ नजर आते थे।[3]

अच्छे पटकथा लेखक

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि अभिनय में सबसे ज़्यादा नकल दिलीप कुमार के अभिनय की ही हुई है। शायद यह कम लोगों को ही पता हो कि दिलीप कुमार अच्छे पटकथा लेखक भी हैं। अपनी इस प्रतिभा का प्रदर्शन उन्होंने फ़िल्म 'लीडर' में किया था। हालांकि लीडर कामयाब फ़िल्म नहीं थी, लेकिन उसकी कहानी ऐसी थी, जिसमें भविष्य के संकेत छिपे थे। उसमें वोट और राजनीति के सही चेहरे को दिखाया गया था। दिलीप कुमार ने फ़िल्मालय स्टूडियो में एक पेड़ के नीचे बैठकर लीडर की पटकथा लिखी थी। पूरी कहानी वोट की राजनीति और उद्योगपति-राजनीतिज्ञों के संबंधों की थी। यह तब की बात है, जब देश को आजाद हुए डेढ़ दशक हुए थे। वह पंडित नेहरू का स्वप्न-काल था। राजनीति का आज जो स्वरूप है, वह उसी समय से गंदा होने लगा था। फ़िल्म में आचार्य जी (मोतीलाल) वैसे ही राजनीतिक किरदार थे, जो जनता के प्रति समर्पित थे। ईमानदारी और सेवा की राजनीति करते थे और जनता को भी उसी रास्ते पर ले जाना चाहते थे। चुनाव में वोट को बेचने को अपनी जमीर बेचने के बराबर समझते थे, लेकिन दूसरी तरफ काला करने वाले उद्योगपति दीवान महेंद्रनाथ (जयंत) थे, जो आचार्य जी के विचारों को खतरनाक मानते थे। उन्हें रुपये की ताकत पर भरोसा था और वे वोटों को ख़रीदने के हिमायती थे।
अमिताभ बच्चन, शाहरुख ख़ान और दिलीप कुमार
कहानी में एक अखबार था यंग लीडर, जिसके संपादक थे विजय खन्ना यानी दिलीप कुमार। यह फ़िल्म छोटे बजट से शुरू हुई थी और ब्लैक एंड व्हाइट में बनाने का फैसला किया गया था। बाद में विचार बदलकर बजट को बड़ा कर दिया गया। फिर भी फ़िल्म ज्यादा चल नहीं पाई। काफ़ी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन फ़िल्म की चर्चा खूब हुई। इसी फ़िल्म से अमजद खान ने बतौर सहायक निर्देशक फ़िल्मों में प्रवेश किया था। दिलीप कुमार ने इस फ़िल्म में अभिनय के कई रंग दिखाए। कॉमेडी, ट्रैजिडी, चुलबुली, गंभीर, प्यार करने वाला आदि। आश्चर्य की बात तो यह है कि फ़िल्म न चलने के बावजूद उन्हें इस रोल के लिए श्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फेअर अवार्ड मिला था। इसमें शकील बदायूंनी का एक गाना था, जिसके बोल थे अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं..। इस गीत को मोहम्मद रफी ने पंडित नेहरू के समक्ष गाया था। जिस समय लीडर बननी शुरू हुई, उस समय भारत-चीन युद्ध चल रहा था। युद्ध को ध्यान में रखते हुए ही शकील बदायूंनी से यह गीत लिखने के लिए कहा गया था।[4]

विवाह

दिलीप कुमार ने 1966 में प्रसिद्ध अभिनेत्री सायरा बानो से शादी की थी। जिस समय दिलीप कुमार और सायरा बानो की शादी हुई थी उस समय सायरा बानो 22 साल और दिलीप साहब 44 साल के थे। आज यह जोड़ी बॉलीवुड की सबसे प्रसिद्ध जोड़ियों में से एक है। जब लोगों ने अखबारों में यह पढ़ा कि दिलीप कुमारअभिनेत्री सायरा बानो से शादी कर रहे हैं, तो वे चौंक गए। वैसे, उनका चौंकना स्वाभाविक ही था, क्योंकि शादी से पहले तक दिलीप कुमार ने सायरा बानो के साथ एक भी फ़िल्म नहीं की थी। दोनों में न दोस्ती थी और न ही मिलना-जुलना था। सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों की उम्र में बहुत बड़ा फ़र्क़ था। एक और सच यह था कि उन दिनों फ़िल्मी पत्रिकाएं सायरा बानो का नाम भी उनके सहअभिनेता राजेंद्र कुमार से जोड़ रही थीं।

दिलीप-सायरा की जोड़ी

दिलीप कुमार अपनी पत्नी सायरा बानो के साथ
सायरा बानो उन नसीम बानो की बेटी हैं, जिन्होंने सोहराब मोदी की फ़िल्म पुकार में मलिका नूरजहां का किरदार निभाकर अपनी ख़ूबसूरती से सबको चकाचौंध कर दिया था। इस फ़िल्म के बाद नसीम बानो के साथ परी चेहरा का विशेषण जुड़ गया। सायरा जब पढ़ाई पूरी करके मुंबई लौटीं, तो अम्मी ने सायरा को अपने कदमों पर चलाया। पुराने मित्र सुबोध मुखर्जी से कहकर जंगली की हीरोइन बनवा दिया। रातोंरात सायरा स्टार बन गई। जंगली की कामयाबी के कुछ दिनों बाद एक पार्टी में सायरा ने जब दिलीप कुमार को देखा, तो मां से कहा, अम्मी दिलीप साहब से मिलाओ न। नसीम ने मिलाया, यूसुफ साहब, यह है मेरी बेटी सायरा। सायरा ने आदाब किया। कानों में धीरे से खुश रहो के लफ्ज घुल गए। इस मुलाकात के दौरान दरअसल, सायरा ने यह सोचा था कि दिलीप कुमार जंगली की कामयाबी की बधाई देंगे, लेकिन उन्होंने दो लफ्ज बोलने के बाद कोई तवज्जो नहीं दी। अलबत्ता नसीम बानो से बात जरूर करते रहे। सायरा दिलीप कुमार की जबरदस्त फैन थीं। इतनी कि जब लंदन में स्कूली पढ़ाई कर रही थीं, तो उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में से तस्वीरें काटकर दीवारों पर चिपका लिए थे, लेकिन वे दिलीप कुमार के साथ कभी हीरोइन बनेंगी, इसकी उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी। वजह दोनों में उम्र का अंतर। शादी की बात तो सायरा के दिमाग में आने का सवाल ही नहीं था। हां, उनकी यह तमन्ना जरूर थी कि दिलीप साहब के साथ कम से कम एक फ़िल्म जरूर करूं।
दिलीप साहब से बात करने के लिए एक पार्टी में सायरा ने हैंडशेक के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन तब तक दिलीप आदाब कह चुके थे। मजबूरन सायरा को हाथ वापस लेना पड़ा। उन दिनों कुछ लोगों का मानना यह था कि सायरा के राजेंद्र कुमार से रिश्ते जुड़ने की खबरों से उनकी मां नसीम बानो परेशान थीं। राजेंद्र कुमार जुबली कुमार के नाम से कामयाब हीरो जरूर हो गए थे, लेकिन वे शादीशुदा ही नहीं, एक बेटे के बाप भी थे। कुछ लोगों ने इस रिश्ते को सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की। इन सबसे परेशान हो नसीम बानो ने अपनी बेटी के हाथ पीले करने का फैसला किया। जाहिर है कि बेटी के लिए नसीम बानो कोई कद्दावर दामाद ढूंढतीं-एक ऐसा व्यक्ति, जिसका रुतबा हो, इज्जत हो और जो उनकी लाडली को वह सब दे सके, जो एक ऊंचे घराने की दुल्हन को मिलना चाहिए। इस नजरिए से दिलीप कुमार सही पसंद थे। वे कुंवारे थे और बॉलीवुड के सबसे कद्दावर आर्टिस्ट माने जाते थे। अगर कोई कसर थी, तो वह थी उम्र की, क्योंकि सायरा से वे काफ़ी बड़े थे। सायरा को 'सस्ता ख़ून महंगा पानी' की शूटिंग से बुलाया गया। मां की पसंद पर बेटी ने भी हां की मुहर तुरंत लगा दी।
दिलीप-सायरा की शादी कराने का सारा श्रेय नसीम बानो को ही जाता है। 
पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी एवं बॉलीवुड के कलाकारों के साथ दिलीप कुमार
सायरा से बात करने से पहले नसीम ने दिलीप से रिश्ते की बात की। उन्होंने कहा, पहले बेटी की रज़ामंदी तो ले लीजिए। नसीम बानो ने कहा, शादी! सायरा तो आपकी हीरोइन बन जाती, तो अपने को धन्य मानती। यहां तो बात हो रही है दिलीप की असली ज़िंदगी की हीरोइन बनने की। पहले तो सायरा को लगा कि अम्मी मजाक कर रही हैं, लेकिन जब यकीन हो गया कि बात सचमुच शादी की है और दिलीप की मंजूरी मिल चुकी है, तब तो जैसे सायरा के पंख लग गए। उन्होंने दिलीप को फोन किया। रिश्ते के लिए मुबारकबाद दी और शुक्रिया सुनकर शादी की तारीख पूछ बैठीं। जवाब मिला, सास से पूछिए। दरअसल, एक मुलाकात के दौरान नसीम बानो ने यह बताया था कि उनके मन में चार महीना पहले ही यह खयाल आया था कि सायरा के हाथ में हकीकत में शादी की मेहंदी लगे, लेकिन उन्होंने पल भर के लिए भी यह नहीं सोचा था कि उनकी तमन्ना इतनी जल्द पूरी हो जाएगी। शादी धूमधाम से हुई। दिलीप घोड़े पर सवार होकर बैंड बाजे के साथ अपने बंगले से निकल कर नसीम बानो के बंगले पर पहुंचे। क़ाज़ीने निकाह कराया। दावतें हुई सायरा के यहां और दिलीप के यहां भी। इस शादी ने सायरा बानो को अपने वक्त के सबसे बड़े अदाकार की बीवी बनने का मौका दिया। सच तो यह है कि बाद के दिनों में सायरा को अपने आइडल स्टार के साथ गोपी, सगीना, बैराग, दुनिया जैसी सुपरहिट फ़िल्मों में काम करने का अवसर भी मिला।[5]

फ़िल्मी सूची

दिलीप कुमार के अभिनय के विभिन्न रूप
मधुबाला और दिलीप कुमार (मुग़ल ए आज़म)
अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार (फ़िल्म- शक्ति)
दिलीप कुमार (फ़िल्म- नया दौर)
अशोक कुमार और दिलीप कुमार (फ़िल्म- दीदार)
राज कपूरनर्गिस और दिलीप कुमार (फ़िल्म-अंदाज़)
दिलीप कुमार (फ़िल्म- गंगा जमना)
दिलीप कुमार (फ़िल्म- कर्मा)
राज कुमार और दिलीप कुमार (फ़िल्म-सौदागर)
दिलीप कुमार और अमरीश पुरी(फ़िल्म- विधाता)
अनिल कपूर और दिलीप कुमार (फ़िल्म- मशाल)
दिलीप कुमार (फ़िल्म- देवदास)
दिलीप कुमार (फ़िल्म- राम और श्याम)
वहीदा रहमान और दिलीप कुमार (फ़िल्म- दिल दिया दर्द लिया)
मनोज कुमार और दिलीप कुमार (फ़िल्म- आदमी)
दिलीप कुमार का फ़िल्मी सफ़र
वर्षफ़िल्म का नामचरित्र का नामविशेष
1944ज्वार भाटाजगदीशपहली फ़िल्म
1945प्रतिमा
1947मिलनरमेश
1947जुगनूसूरज
1948शहीदराम
1948नदिया के पार
1948मेलामोहन
1948घर की इज़्ज़तचंदा
1948अनोखा प्यारअशोक
1949शबनममनोज
1949अंदाज़दिलीप
1950जोगनविजय
1950बाबुलअशोक
1950आरज़ूबादल
1951तरानामोतीलाल
1951हलचलकिशोर
1951दीदारशामू
1952संगदिलशंकर
1952दागशंकरफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1952आनजय तिलक
1953शिकस्तडॉ. राम सिंह
1953फ़ुटपाथनोशू
1954अमरअमरनाथ
1955उडन खटोला
1955इंसानियतमंगल
1955देवदासदेवदास मुखर्जीफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1955आज़ादफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1957नया दौरशंकरफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1957मुसाफिर
1958यहूदीप्रिंस मार्क्स
1958मधुमतीआनंद / देवननामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1959पैग़ामरतन लालनामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1960कोहिनूरफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1960मुग़ल ए आज़मप्रिंस सलीम
1961गंगा जमनागंगानामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1964लीडरविजय खन्नाफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1966दिल दिया दर्द लियाशंकर / राजासाहबनामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1967राम और श्यामराम और श्यामफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1968संघर्षनामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1968आदमीराजेश / राजा साहबनामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1970सगीना महतोसगीना
1970गोपीगोपीनामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1972दास्तानअनिल / सुनील
1972अनोखा मिलन
1974सगीनानामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1976बैरागनामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1981क्रांतिसंगा / क्रांति
1982विधाताशमशेर सिंह
1982शक्तिअश्विनी कुमारफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1983मज़दूरदीनानाथ सक्सेना
1984दुनियामोहन कुमार
1984मशालविनोद कुमारनामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1986धरम अधिकारी
1986कर्माविश्वनाथ प्रताप सिंह / राना
1989क़ानून अपना अपनाकलैक्टर जगत प्रताप सिंह
1990इज़्ज़तदारब्रह्मादत्त
1990आग का दरिया
1991सौदागरठाकुर वीर सिंहनामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1998क़िलाजगनाथ / अमरनाथ सिंह

दिलीप कुमार के सह-अभिनेता

दिलीप कुमार के साथ काम करना हर कलाकार के लिए एक सपना होता है। ये सपना कम कलाकारों का ही पूरा हो पाया है क्योंकि दिलीप कुमार ने बेहद कम फ़िल्में की। साथ ही कुछ कलाकार उनके सामने आने से इसलिए बचते रहे क्योंकि वे दिलीप साहब के सामने कमज़ोर नहीं लगना चाहते थे। जिन प्रमुख कलाकारों ने उनके साथ काम किया है, वे इस प्रकार हैं :
दिलीप कुमार के सह-अभिनेता[6]
अभिनेताफ़िल्म
अजीतनया दौरमुग़ल-ए-आजम
अमिताभ बच्चनशक्ति
अनिल कपूरशक्ति, मशाल, कर्मा
अशोक कुमारदीदार, शक्ति
बलराज साहनीहलचल, संघर्ष
देव आनंदइंसानियत
गोविंदाइज़्ज़तदार
जैकी श्रॉफकर्मासौदागर
मनोज कुमारआदमी, क्रांति
नसीरुद्दीन शाहकर्मा
पृथ्वीराज कपूरमुग़ल-ए-आज़म
राज कपूरअंदाज़
राज कुमारपैगाम, सौदागर
संजय दत्तविधाता, क़ानून अपना-अपना
संजीव कुमारसंघर्ष, विधाता
शम्मी कपूरविधाता
शशि कपूरक्रांति
शत्रुघ्न सिन्हाक्रांति

राज कपूर और देवानंद से दोस्ती

दिलीप साहब की देवानंद और राज कपूर दोनों से दोस्ती थी। लेकिन राज साहब के साथ उनके बड़े नज़दीकी रिश्ते थे। दोनों ही पाकिस्तान के पेशावर शहर में एक ही मोहल्ले, एक ही सड़क के रहने वाले थे। बिलकुल भाइयों जैसा रिश्ता था उनका। देव साहब थोड़ा अलग किस्म के शख़्स थे, लेकिन उनके साथ भी साहब ने बड़ी दोस्ती निभाई। 
दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद
एक बार देव अपनी फ़िल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' की शूटिंग के सिलसिले में मुमताज के साथकाठमांडू जा रहे थे, तब किसी पार्टी ने मुसीबत खड़ी कर दी और ऐलान किया कि वो इस फ़िल्म की शूटिंग नहीं होने देंगे। वो लोग देव को रोकने एयरपोर्ट तक पहुंच गए, तब दिलीप जी एयरपोर्ट तक गए और देव की हिफाज़त में वहां खड़े रहे। सायरो बानो और दिलीप साहब दोनों ने फ़िल्म इंडस्ट्री के कई लोगों को इकट्ठा किया और देव के लिए एयरपोर्ट में जाकर डट गए। तब जाकर सही सलामत देव काठमांडू रवाना हो सके।[7]

सम्मान और पुरस्कार

दिलीप कुमार, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से सम्मानित होते हुए
आज ज़्यादातर लोगों को इस बात पर आश्चर्य होता है कि इस महानायक ने सिर्फ 54 फ़िल्में क्यों की। लेकिन इसका उत्तर है दिलीप कुमार ने अपनी छवि का सदैव ध्यान रखा और अभिनय स्तर को कभी गिरने नहीं दिया। इसलिए आज तक वे अभिनय के पारसमणि बने हुए हैं जबकि धूम-धड़ाके के साथ कई सुपर स्टार, मेगा स्टार आए और आकर चले गए। दिलीप कुमार ने अभिनय के माध्यम से राष्ट्र की जो सेवा की, उसके लिए भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पद्म भूषण, 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है और 1995 में फ़िल्म का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान 'दादा साहब फालके अवॉर्ड' भी प्रदान किया। पाकिस्तान सरकार ने भी उन्हें 1997 में 'निशान-ए-इम्तियाज' से नवाजा था, जो पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। 1997 में ही उन्हें भारतीय सिनेमा के बहुमूल्य योगदान देने के लिए ए.नटी रामाराव पुरस्कार दिया गया, जबकि 1998में समाज कल्याण के क्षेत्र में योगदान के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कार दिया गया।[3]दिलीप कुमार का नाम सबसे ज़्यादा पुरस्कार पाने वाले भारतीय अभिनेता के रूप में "गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स" में दर्ज़ है।[8]

फ़िल्मफेयर पुरस्कार

1953 में फ़िल्म फेयर पुरस्कारों के श्रीगणेश के साथ दिलीप कुमार को फ़िल्म 'दाग' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार‍ दिया था। अपने जीवनकाल में दिलीप कुमार कुल आठ बार फ़िल्म फेयर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पा चुके हैं और यह एक कीर्तिमान है जिसे अभी तक तोड़ा नहीं जा सका। अंतिम बार उन्हें सन् 1982 में फ़िल्म 'शक्ति' के लिए यह पुरस्कार दिया गया था, जबकि फ़िल्मफेयर ने ही उन्हें 1993 में राज कपूर की स्मृति में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया।[3]
जवाहरलाल नेहरू के साथ दिलीप कुमार,देवानंद और राज कपूर
  1. 1983 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - शक्ति
  2. 1968 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - राम और श्याम
  3. 1965 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - लीडर
  4. 1961 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - कोहिनूर
  5. 1958 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - नया दौर
  6. 1957 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - देवदास
  7. 1956 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - आज़ाद
  8. 1954 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - दाग

फ़िल्मी सफ़र पर एक नज़र[9]

गोल्डन जुबली हिट
जुगनूमेलाअंदाज़, आन, दीदार, आज़ाद, मुग़ल-ए-आज़म, कोहिनूर, गंगा-जमना, राम और श्याम,गोपी, क्रांति, विधाता, कर्मा और सौदागर
सिल्वर जुबली हिट
शहीद, नदिया के पार, आरजू, जोगन, अनोखा प्यार, शबनम, तराना, बाबुल, दाग, उड़न खटोला, इंसानियत, देवदास, मधुमती, यहूदी, पैगाम, लीडर, आदमी, संघर्ष।
विनोदी (हास्य) भूमिका
शबनम, आज़ाद, कोहिनूर, लीडर, राम और श्याम, गोपी।
दबंग भूमिका
आन, आजाद, कोहिनूर, क्रांति।
नकारात्मक भूमिका
फुटपाथ, अमर।
अपूर्ण फ़िल्में
काला आदमी, जानवर, खरा-खोटा, चाणक्य-चंद्रगुप्त, आखिरी मुग़ल।
अभिनय से इनकार
बैजू बावरा, प्यासा, कागज के फूल, संगम, दिल दौलत और दुनिया, नया दिन नई रात, जबरदस्त, लॉरेंस ऑफ अरेबिया, द बैंक मैनेजर।

दिलीप कुमार की नायिकाएँ

सिर्फ एक बार काम किया[10]
  • अपर्णा सेन (सगीन महतो)
  • बेगम पारा (शबनम)
  • बी. सरोजादेवी (पैगाम)
  • भारती (इज्जतदार)
  • बीना राय (इंसानियत)
  • कुमकुम (कोहिनूर)
  • लीना चंदावरकर (बैराग)
  • मीरा मिश्रा (मिलन)
  • मृदुला (ज्वार-भाटा)
  • मुमताज शांति (घर की इज्जत)
  • मुमताज़ (राम और श्याम)
  • मुनव्वर सुल्ताना (बाबुल)
  • नादिरा (आन)
  • नंदा (मज़दूर)
  • निरुपा राय (क्रांति)
  • नूरजहाँ (जुगनू)
  • राखी (शक्ति)
  • रोहिणी हटंगड़ी (धर्माधिकारी)
  • रूमा गांगुली (बैराग)
  • शर्मिला टैगोर (दास्तान)
  • श्यामा (तराना)
  • सिमी (आदमी)
  • सितारा देवी (हलचल)
  • सुचित्रा सेन (देवदास)
  • स्वर्णलता (प्रतिमा)
  • उषा किरण (मुसाफिर)
  • राधा सेठ (कलिंगा)
दिलीप कुमार के साथ नायिकाओं की जोड़ी[10]
अभिनेत्रीनामफ़िल्में
Nargis-Dutt.jpgनर्गिसअनोखा प्यार, मेला, अंदाज़, हलचल, जोगन, दीदार, बाबुल।
Vaijayanti-Mala.jpgवैजयंती मालादेवदास, नया दौर, मधुमती, पैग़ाम, लीडर, गंगा-जमना, संघर्ष।
Madhubala-1.jpgमधुबालातराना, संगदिल, अमर, मुग़ल-ए-आज़म।
कामिनी कौशलकामिनी कौशलशहीद, नदिया के पार, शबनम, आरजू।
Meena-kumari-1.jpgमीना कुमारीफुटपाथ, आज़ाद, यहूदी, कोहिनूर।
Nimmi.jpgनिम्मीआन, दीदार, दाग, अमर, उड़न खटोला।
Waheeda-Rehman-1.jpgवहीदा रहमानदिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, आदमी, मशाल।
Saira-banu.jpgसायरा बानोगोपी, सगीना महतो, बैराग, दुनिया।
नलिनी जयवंतनलिनी जयवंतअनोखा प्यार, शिकस्त।
Nutan.jpgनूतनकर्मा, क़ानून अपना-अपना।

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