सत्याग्रह एक
हिन्दी शब्द है, जिसका अर्थ है
सत्य के लिए आग्रह। इसका सूत्रपात सर्वप्रथम
महात्मा गांधी ने
1894 ई. में
दक्षिण अफ़्रीका
में किया था। व्यवहार में यह बुराई विशेष के प्रति दृढ़, लेकिन अहिंसक
प्रतिरोध के रूप में प्रकट हुआ। ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरुद्ध भारतीय जनता
के संघर्ष में सत्याग्रह मार्गदर्शक था।
सत्याग्रह से अभिप्राय
सत्याग्रह का अर्थ '
सत्य
के प्रति समर्पण' या 'सत्य की शक्ति' हो सकता है। सत्याग्रह का अनुयायी
सत्याग्रही अहिंसा का पालन करते हुए शान्ति व प्रेम का लक्ष्य सामने रखकर
सत्य की खोज द्वारा किसी बुराई की वास्वविक प्रकृति को देखने की सही
अंत:दृष्टि प्राप्त कर लेता है। इसका अभिप्राय सामाजिक एवं राजनीतिक
अन्यायों को दूर करने के लिए सत्य और अंहिसा पर आधारित आत्मिक बल का प्रयोग
था। यह एक प्रकार का निष्क्रिय प्रतिरोध था, जो व्यक्तिगत अथवा सामूहिक
रूप से कष्ट सहन द्वारा विरोधी का
ह्रदय
परिवर्तन करने में सक्षम हो। दक्षिण अफ़्रीका में इस आन्दोलन को अत्यधिक
सफलता मिली। जनरल स्मट्स को प्रवासी भारतीयों के आन्दोलन का औचित्य स्वीकार
करना पड़ा और
भारत के वाइसराय
लॉर्ड हार्डिंग ने भी उनके प्रति सहानुभूति प्रकट की। अन्तत: इस आन्दोलन से दक्षिण अफ़्रीका के भारतीयों की अनेक शिक़ायतें दूर हुईं।
सत्य-बोध प्रदाता
इस आन्दोलन द्वारा सत्याग्रही को निरपेक्ष सत्य का बोध होता है। ग़लत के
प्रति समर्पण या उससे किसी प्रकार के सहयोग से अपने इनकार से सत्याग्रही
इस सत्य को स्थापित करता है। बुराई से, अपने संघर्ष में उसे अपने अहिंसा के
मार्ग पर बने रहना चाहिए, क्योंकि हिंसा विरोधी का सहारा लेना उचित
अंत:दृष्टि का खो देना होगा। सत्याग्रही हमेशा ही अपने विरोधी को अपने
इरादों की पूर्व चेतावनी देता रहता है। सत्याग्रह केवल सविनय अवज्ञा ही
नहीं है; इसकी पूर्ण कार्य-पद्धतियों में उचित दैनिक जीवन निर्वाह से लेकर
वैकल्पिक राजनीतिक और आर्थिक संस्थानों का निर्माण तक आ जाता है। सत्याग्रह
हृदय परिवर्तन के ज़रिये जीतने का प्रयास करता है; जिसके अन्त में कोई हार
या जीत नहीं होती, बल्कि एक नए सामंजस्य का उदय होता है।
सत्याग्रह का मूल
महात्मा गांधी ने लियो टॉल्स्टॉय और हेनरी डेविड थोरो के लेखन,
ईसाईयों की
बाइबिल,
भागवदगीता और अन्य
हिन्दू शास्त्रों से
सत्याग्रह
की अपनी अवधारणा को सूत्रबद्ध किया। सत्याग्रह का मूल हिन्दू अवधारणा
अहिंसा में है। गांधी जी ने दक्षिण अफ़्रीका के ट्रांसवाल में औपनिवेशिक
सरकार द्वारा
एशियाई लोगों के साथ भेदभाव के क़ानून को पारित किये जाने के ख़िलाफ़
1906 ई. में पहली बार सत्याग्रह का प्रयोग किया।
भारत में सत्याग्रह
भारत में पहला सत्याग्रह आन्दोलन
1917 ई. में नील की खेती वाले चम्पारण ज़िले में हुआ। इसके बाद के वर्षों में
सत्याग्रह के तरीक़ों के रूप में
उपवास
और आर्थिक बहिष्कार का उपयोग किया गया। व्यावहारिक दृष्टि से एक
सार्वभौमिक दर्शन के रूप में सत्याग्रह की प्रभावोत्पादकता पर प्रश्नचिह्न
लगाए गए हैं। सत्याग्रह अप्रत्यक्ष रूप से यह स्वीकार करता जान पड़ता है कि
विरोधी पक्ष किसी न किसी स्तर की नैतिकता का पालन करेगा, जिसे सत्याग्रही
का सत्य अन्तत: शायद प्रभावित कर जाए। लेकिन स्वयं गांधी जी का मानना था कि
सत्याग्रह कहीं भी सम्भव है, क्योंकि यह किसी को भी परिवर्तित कर सकता है।
स्वरूप परिवर्तन
1920 ई. के राष्ट्रीय आन्दोलन में इसका प्रयोग
भारत में
अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध अहिंसात्मक
असहयोग आन्दोलन के रूप में हुआ। तत्पश्चात इसका स्वरूप
सविनय अवज्ञा आन्दोलन
में परिवर्तित हो गया। निश्चय ही इस आन्दोलन ने भारतीयों को अंग्रेज़ी
शासन का अन्त करने के लिए कृतसंकल्प किया। इस प्रकार भारत की स्वतंत्रता
प्राप्ति में इसका ठोस योगदान रहा है।
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