सविनय अवज्ञा आन्दोलन, ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा चलाये गए जन आन्दोलन में से एक था। 1929 ई. तक भारत को ब्रिटेन के इरादे पर शक़ होने लगा कि वह औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की अपनी घोषणा पर अमल करेगा कि नहीं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन (1929 ई.) में घोषणा कर दी कि उसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना है। महात्मा गांधी ने अपनी इस माँग पर ज़ोर देने के लिए 6 अप्रैल, 1930
ई. को सविनय अविज्ञा आन्दोलन छेड़ा। जिसका उद्देश्य कुछ विशिष्ट प्रकार के
ग़ैर-क़ानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना था।
मुख्य लेख : महात्मा गांधी
ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन को दबाने के लिए सख़्त क़दम उठाये और गांधी जी
सहित अनेक कांग्रेसी नेताओं व उनके समर्थकों को जेल में डाल दिया।
आन्दोलनकारियों और सरकारी सिपाहियों के बीच जगह-जगह ज़बर्दस्त संघर्ष हुए। शोलापुर जैसे स्थानों पर औद्योगिक उपद्रव और कानपुर
जैसे नगरों में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे। हिंसा के इस विस्फ़ोट से
गांधी जी चिन्तित हो उठे। वे आन्दोलन को बिल्कुल अहिंसक ढंग से चलाना चाहते
थे।
मुख्य लेख : गाँधी-इरविन समझौता
सरकार ने भी गांधी जी व अन्य कांग्रेसी नेताओं को रिहा कर दिया और वाइसराय लॉर्ड इरविन और गांधी जी के बीच सीधी बातचीत का आयोजन करके समझौते की अभिलाषा प्रकट की। गांधी जी और लॉर्ड इरविन
में समझौता हुआ, जिसके अंतर्गत सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस ले लिया गया।
हिंसा के दोषी लोगों को छोड़कर आन्दोलन में भाग लेने वाले सभी बन्दियों को
रिहा कर दिया गया और कांग्रेस गोलमेज सम्मेलन के दूसरे अधिवेशन में भाग लेने को सहमत हो गई।
इन्हें भी देखें: असहयोग आन्दोलन की प्रेरणा -महात्मा गाँधी
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के अंतर्गत चलाये जाने वाले कार्यक्रम निम्नलिखित थे-- नमक क़ानून का उल्लघंन कर स्वयं द्वारा नमक बनाया जाए।
- सरकारी सेवाओं, शिक्षा केन्द्रों एवं उपाधियों का बहिष्कार किया जाए।
- महिलाएँ स्वयं शराब, अफ़ीम एवं विदेशी कपड़े की दुकानों पर जाकर धरना दें।
- समस्त विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करते हुए उन्हें जला दिया जाए।
- कर अदायगी को रोका जाए।
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