रौलट एक्ट 8 मार्च,
1919 ई. को लागू किया गया था।
भारत
में क्रान्तिकारियों के प्रभाव को समाप्त करने तथा राष्ट्रीय भावना को
कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश 'सर सिडनी रौलट' की अध्यक्षता
में एक कमेटी नियुक्त की। कमेटी ले
1918 ई. में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। कमेटी द्वारा दिये गये सुझावों के अधार पर केन्द्रीय विधानमण्डल में
फ़रवरी,
1919 ई. में दो विधेयक लाये गये। पारित होने के उपरान्त इन विधेयकों को
'रौलट एक्ट' या 'काला क़ानून' के नाम से जाना गया। राष्ट्रपिता
महात्मा गाँधी ने इस एक्ट का पुरजोर विरोध किया और ब्रिटिश सरकार को 'शैतानी लोगों' की संज्ञा दी।
एक्ट को लागू करना
भारतीय नेताओ द्वारा कड़ाई से विरोध करने के बाद भी रौलट एक्ट विधेयक
लागू कर दिया गया। इस विधेयक में की गयी व्यवस्था के अनुसार मजिस्ट्रेटों
के पास यह अधिकार था कि वह किसी भी संदेहास्पद स्थिति वाले व्यक्ति को
गिरफ्तार करके उस पर मुकदमा चला सकता था। इस प्रकार अपने इस अधिकार के साथ
अंग्रेज़
सरकार किसी भी निर्दोष व्यक्ति को दण्डित कर सकती थी। इस प्रकार क़ैदी को
अदालत में प्रत्यक्ष उपस्थित करने अर्थात् बंदी प्रत्यक्षीकरण के क़ानून को
निलंबित करने का अधिकार सरकार ने रौलट क़ानून से प्राप्त कर लिया। इस एक्ट
को 'बिना अपील, बिना वकील तथा बिना दलील' का क़ानून भी कहा गया। इसके साथ
ही इसे 'काला अधिनियम' एवं 'आतंकवादी अपराध अधिनियम' के नाम से भी जाना
जाता हैं।
महात्मा गांधी का नेतृत्व
गांधी जी का अब तक भारतीय राजनीति में प्रवेश हो चुका था। उन्होंने इस एक्ट के विरोध में
6 अप्रैल, 1919 ई. को एक देशव्यापी हड़ताल करवायी।
दिल्ली में इस आन्दोलन की बागडोर
स्वामी श्रद्धानंदजी ने संभाली। वहाँ भीड़ पर चलाई गई गोली में 5 आन्दोलनकारी आहत हुए।
लाहौर एवं
पंजाब
में भी भीड़ पर गोलियाँ चलायी गईं। स्वामी श्रद्धानंद एवं डॉक्टर सत्यपाल
के निमंत्रण पर महात्मा गांधी दिल्ली की ओर चले। गांधी जी ने रौलट ऐक्ट की
आलोचना करते हुए इसके विरुद्ध
सत्याग्रह
करने के लिए 'सत्याग्रह सभा' की स्थापना की। इसके अन्य सदस्यों में लाल
दास, द्वारकादास, शंकरलाल बैंकर, उमर सोमानी, बी.जी. हर्नीमन आदि शामिल थे।
मार्ग में
8 अप्रैल, 1919 को उन्हे
पलवल (
हरियाणा) में गिरफ्तार कर
बम्बई भेज दिया गया, जहाँ से वे
13 अप्रैल को
अहमदाबाद पहुँचे। तब तक स्थिति काफ़ी सामान्य हो चुकी थी।
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