गवर्नर-जनरल ब्रिटिश
भारत
का एक सर्वोच्च अधिकारी का पद हुआ करता था। ब्रिटिश भारत के समय कोई भी
भारतीय इस पद पर नहीं रखा गया, क्योंकि यह पद बहुत ही महत्त्वपूर्ण पद था
और इस पर सिर्फ़
अंग्रेज़ों का ही अधिकार था। 1858 ई. तक, गवर्नर-जनरल को ब्रिटिश
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के निदेशकों द्वारा चयनित किया जाता था, और वह उन्हीं के प्रति जवाबदेह भी होता था। बाद में वह महाराजा द्वारा,
ब्रिटिश सरकार द्वारा,
भारत के राज्य सचिव द्वारा और ब्रिटिश कैबिनेट के द्वारा; इन सभी की राय से चयनित होने लगा।
1947
ई. के बाद सम्राट ने उसकी नियुक्ति जारी रखी, लेकिन उसकी नियुक्ति भारतीय
मंत्रियों की राय से की जाती थी, न की ब्रिटिश मंत्रियों की सलाह से।
गवर्नर-जनरल का कार्यकाल पाँच
वर्ष
के लिये होता था। इस अवधि से पहले भी उसे हटाया जा सकता था। इस काल के
पूर्ण होने पर, एक अस्थायी गवर्नर-जनरल बनाया जाता था, जब तक कि नया
गवर्नर-जनरल पदभार ग्रहण ना कर ले। अस्थायी गवर्नर-जनरल को प्रायः
प्रान्तीय गवर्नरों में से ही चुना जाता था।
पद की सृष्टि
1773 ई. के
रेग्युलेटिंग एक्ट के अंतर्गत इस पद की सृष्टि की गई। सर्वप्रथम
वारेन हेस्टिंग्स इस पद पर नियुक्त हुआ। वह 1774 से 1786 ई. तक इस पद पर रहा। इस पद का पूरा नाम
बंगाल फ़ोर्ट विलियम का गवर्नर-जनरल था, जो 1834 ई. तक रहा। 1833 ई. के
चार्टर एक्ट के अनुसार इस पद का नाम
भारत का गवर्नर-जनरल हो गया। 1858 ई. में जब भारत का शासन कम्पनी के हाथ से ब्रिटेन की महारानी के हाथ में आ गया, तब गवर्नर-जनरल को
वाइसराय (राज प्रतिनिधि) भी कहा जाने लगा। जब तक भारत पर ब्रिटिश शासन रहा तब तक भारत में कोई भारतीय गवर्नर-जनरल या वाइसराय नहीं हुआ।
अधिकार और कर्तव्य
1773 ई. के रेगुलेटिंग एक्ट में गवर्नर-जनरल के अधिकारों और कर्तव्यों का विवरण दिया हुआ है। बाद में
पिट के इंडिया एक्ट
(1784) तथा पूरक एक्ट (1786) के अनुसार इस अधिकारों और कर्तव्यों को
बढ़ाया गया। गवर्नर-जनरल अपनी कौंसिल (परिषद्) की सलाह एवं सहायता से शासन
करता था, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर वह परिषद की राय की उपेक्षा भी कर सकता
था। इस व्यवस्था से गवर्नर-जनरल व्यवहारत: भारत का भाग्य-विधाता होता था।
केवल सुदूर स्थित ब्रिटेन की संसद और भारतमंत्री ही उस पर नियंत्रण रख सकते
थे।
उपाधि व सम्बोधन
अंग्रेज़ गवर्नर जनरल और वायसराय
जनरल और वायसराय
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कार्य / कार्यकाल
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अंग्रेज़ गवर्नर जनरल
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लॉर्ड विलियम बैंटिक
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1833-35 ई.
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सर चार्ल्स मैटकाफ (स्थानांपन्न)
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1835-36 ई.
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आकलैण्ड
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1836-42 ई.
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लॉर्ड एलनबरो
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1842-44 ई.
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विलियम विलबर फोर्स बर्ड
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1844 ई.
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लॉर्ड हार्डिंग
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1844-48 ई.
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लॉर्ड डलहौज़ी
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1848-56 ई.
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लॉर्ड कैनिंग
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1856-58 ई.
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अंग्रेज़ गवर्नर जनरल और वायसराय
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लॉर्ड कैनिंग
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1858-62 ई.
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लॉर्ड एल्गिन प्रथम
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1862-63 ई.
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सर रार्बट नेपियर (स्थानापन्न)
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1863 ई.
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सर विलियम टी. डेनिसन (स्थानापन्न)
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1863 ई.
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सर जॉन लारेन्स
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1864-68 ई.
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लॉर्ड मेयो
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1869-72 ई.
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सर जॉन स्ट्रेची (स्थानापन्न)
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1872 ई.
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लॉर्ड नार्थब्रुक
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1872-76 ई.
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लॉर्ड लिटन प्रथम
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1876-80 ई.
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मार्क्विस ऑफ़ रिपन
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1880-84 ई.
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अर्ल ऑफ़ डफ़रिन
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1984-88 ई.
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लॉर्ड लैन्सडाउन
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1988-94 ई.
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लॉर्ड एल्गिन द्वितीय
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1894-99 ई.
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लॉर्ड कर्ज़न
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1899-1905 ई.
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लॉर्ड एम्पिराय (स्थानापन्न)
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1904 ई.
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लॉर्ड कर्ज़न
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1904-05 ई.
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लॉर्ड मिन्टो द्वितीय
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1905-10 ई.
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लॉर्ड हार्डिंग्स
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1910-16 ई.
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लॉर्ड चैम्सफोर्ड
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1916-21 ई.
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लॉर्ड रीडिंग
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1921-25 ई.
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लॉर्ड लिटन द्वितीय (स्थानापान्न)
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लॉर्ड इरविन
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1926-31 ई.
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लॉर्ड विलिंगडन
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1931-34 ई.
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सर जॉर्ज स्टेनले
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1934 ई.
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लॉर्ड लिनलिथगो
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1934-37 ई.
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वैरन व्रेवर्न (स्थानापन्न)
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1938 ई.
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लॉर्ड लिनलिथगो
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1938-43 ई.
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लॉर्ड वेवेल
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1943-47 ई.
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लॉर्ड माउण्टबेटेन
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1947 ई.
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अंग्रेज़ जनरल एवं वायसरायों से सम्बन्धित कार्य
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वारेन हेस्टिंग्स
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रेवेन्यू, फ़ौजदारी व अपीली न्यायालयों की स्थापना
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लॉर्ड कार्नवालिस
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स्थायी भूमि बन्दोबस्त
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लॉर्ड वेलेजली
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सहायक संधि प्रणाली
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विलियम बैंटिक
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सती प्रथा की समाप्ति
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चार्ल्स मेटकाफ
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प्रेस पर प्रतिबन्ध की समाप्ति
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लॉर्ड एलनबरो
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सिन्ध का विलय
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लॉर्ड डलहौज़ी
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रेल, आधुनिक डाक, तार व पी. डब्ल्यू. डी. की स्थापना
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लॉर्ड कैनिंग
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कलकत्ता, बम्बई व मद्रास विश्वविद्यालय की स्थापना
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लॉर्ड लिटन
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दिल्ली दरबार, वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, आर्म्स एक्ट
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लॉर्ड रिपन
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प्रथम कारखाना अधिनियम, इल्बर्ट बिल
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लॉर्ड कर्ज़न
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बंगाल विभाजन, प्राचीन स्मारक संरक्षण क़ानून,
भारतीय विश्वविद्यालय क़ानून
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लॉर्ड मिन्टो द्वितीय
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पृथक निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था
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लॉर्ड हार्डिंग
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भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित
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लॉर्ड चेम्सफोर्ड
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रौलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग़ ह्त्याकाण्ड
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लॉर्ड इरविन
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गाँधी इरविन समझौता (1931 ई.)
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लॉर्ड विलिंगडन
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कम्यूनल अवार्ड (1932 ई.)
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लॉर्ड लिनलिथगो
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प्रान्तीय चुनाव
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लॉर्ड वेवेल
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शिमला सम्मेलन, कैबिनेट मिशन, संविधान सभा की स्थापना
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लॉर्ड माउण्टबेटेन
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भारत विभाजन एवं भारत की स्वतंत्रता
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गवर्नर-जनरल (जब वह
वाइसरॉय हुआ करता था, 1858 से 1947 ई. तक) 'एक्सीलेंसी' की शैली प्रयोग किया करते थे।
भारत
में अन्य सभी सरकारी अधिकारियों पर उनका वर्चस्व हुआ करता था। उन्हें 'योर
एक्सीलेंसी' से सम्बोधित किया जाता था, तथा उनके लिये 'हिज़ एक्सीलेंसी'
का प्रयोग किया जाता था। 1858-1947 ई. के काल में गवर्नर-जनरल को फ़्रेंच
भाषा से 'रॉय' यानि राजा, और 'वाइस'
अंग्रेज़ी
से 'उप', यानि इन्हें मिलाकर 'वाइसरॉय' कहा जाता था। इनकी पत्नियों को
'वाइसराइन' के नाम से सम्बोधित किया गया। उनके लिये 'हर एक्सीलेंसी', एवं
उन्हें 'योर एक्सीलेंसी' कहकर सम्बोधित किया जाता था। परन्तु जिस समय
ब्रिटेन के महाराजा भारत में होते थे, उस समय यह उपाधियाँ प्रयोग नहीं की
जाती थीं। अधिकांश गवर्नर-जनरल एवं वाइसरॉय पीयर थे, जो नहीं थे, उनमें सर
जॉन शोर बैरोनत एवं कॉर्ड विलियम बैंटिक लॉर्ड थे, क्योंकि वे एक ड्यूक के
पुत्र थे। केवल प्रथम और अंतिम गवर्नर-जनरल
वारेन हेस्टिंग्स तथा
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, और कुछ अस्थायी गवर्नर-जनरल को कोई विशेष उपाधि प्राप्त नहीं थी।
स्वाधीन भारत में गवर्नर-जनरल
भारत के स्वाधीन होने पर
श्री राजगोपालाचार्य गवर्नर-जनरल के पद पर
25 जनवरी,
1950 तक रहे। उसके बाद
26 जनवरी, 1950 को भारत के गणतंत्र बन जाने पर गवर्नर-जनरल का पद समाप्त कर दिया गया।
लॉर्ड विलियम बैंटिक बंगाल में फ़ोर्ट विलियम का अन्तिम गवर्नर-जनरल था। वहीं फिर 1833 ई. के
चार्टर एक्ट के अनुसार
भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल बना।
लॉर्ड कैनिंग 1858 के भारतीय शासन विधान के अनुसार प्रथम वाइसराय था, तथा
लॉर्ड लिनलिथगो अन्तिम वाइसराय।
लॉर्ड माउण्टबेटन हिन्दुस्तान में सम्राट का अन्तिम प्रतिनिधि था।
अंग्रेज़ गवर्नर जनरलों की सूची
गवर्नर जनरल
|
कार्यकाल
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